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राजस्थान में अपवाह तंत्र 

राजस्थान में अपवाह तंत्र 
● अपवाह तंत्र :

नदियां:- बंगाल की खाड़ी की ओर
– अरब सागर की ओर(कच्छ का रन खम्भात की खाड़ी)
– अंतः प्रवाह

– झीलें
खारे पानी की :- सर्वा. नागौर
मीठे पानी की:- सवी. उदयपुर झीलों में लेक सिटी

– बंगाल की खाड़ी की ओर जल ले जाने वाली नदियां:-
बंगाली – W. B.
काको- काली सिंध, कोठारी
पाब – पार्वती, बनास
को –
बेच – बेड़च, चम्बल के
खागो- खारी, बाणगंगा

● चंबल नदी :-
उपनाम :- चर्मवती, कामधेनु, नित्यवाहि, बारहमासी।
– चंबल नदी में सर्वाधिक सतही जल उपलब्ध है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 20.94% है।
– चंबल नदी राजस्थान की सबसे लंबी नदी है। इसकी कुल लंबाई 966 किलोमीटर है।(राजस्थान में 135 किलोमीटर है।)
– चंबल नदी राजस्थान की वह नदी है जो मध्यप्रदेश के साथ अंतरराज्यीय सीमा बनाती है। (252 किलोमीटर)
– चंबल नदी के द्वारा अवनालिका अपरदन किया जाता है। जिसमें बीहड़ भूमि / उत्खाद भूमि का निर्माण होता है।(कोटा, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर)
– चंबल के बाद सर्वाधिक मिट्टी का अपरदन घग्घर नदी के द्वारा किया जाता है।
– चंबल नदी का प्रवाह क्षेत्र वृक्षाआकार है तथा यह तीन राज्यों में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश,राजस्थान में बहने वाली नदी है।
– इस नदी का उद्गम जाना पाव की पहाड़ी महू मध्य प्रदेश से होता है।(616 मीटर ऊंचाई)
– मध्य प्रदेश में बहती हुई यह जलधारा राजस्थान में प्रवेश 84 गढ़ चित्तौड़ से करती है।
– चित्तौड़, कोटा, बूंदी में बहती हुई सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर की अंतर्राज्यीय सीमा मध्यप्रदेश से बनाती हुई उत्तरप्रदेश के इटावा में यमुना में मिल जाती है। अतः इसका जल बंगाल की खाड़ी तक जाता है।
– चंबल नदी पर चित्तौड़गढ़ में चूलिया जलप्रपात बना हुआ है।
– चंबल नदी पर निम्न चार बांध बने हुए है:-
1. गांधी सागर बांध- मंदसौर (मध्य प्रदेश)
2. राणा प्रताप सागर बांध -चित्तौड़गढ़ (भराव क्षमता की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा बांध)
3. जवाहर सागर बांध – कोटा ( पिकअप बांध)
4. कोटा बैराज बांध- कोटा *केचमेंट एरिया के दृष्टिकोण से राजस्थान का सबसे बड़ा बांध)

Note:- चंबल बेसिन का सर्वाधिक क्षेत्र बारां जिले में स्थित है चंबल नदी के क्षेत्र में कन्दरा सुधार कार्यक्रम चल रहा है।
– राजस्थान सरकार ने बजट 2019 में चंबल अलवर पेयजल परियोजना की घोषणा की है। इस परियोजना से अलवर,भरतपुर,धौलपुर जिले लाभान्वित होंगे।

● चंबल की सहायक नदियां:-
1. गुंजाली नदी- इस जलधारा का उद्गम नीमच मध्यप्रदेश से होता है तो दौलतपुरा गांव चित्तौड़ से राजस्थान में प्रवेश करती है। तथा चित्तौड़ में ही चंबल में मिल जाती है।

2. बामनी नदी:- इस नदी का उद्गम बेगू चित्तौड़गढ़ से होता है तथा भैंसरोडगढ़ चित्तौड़ में चंबल में मिल जाती है।

3. मेज नदी:- इस जलधारा का उदगम बिजोलिया भीलवाड़ा से होता है तथा लाखेरी बूंदी में चंबल में मिल जाता है।
– मांगली नदी का उदगम भीलवाड़ा से होता है तथा बूंदी में मेज नदी में मिल जाती है।
– घोड़ा पछाड़ नदी का उदगम बूंदी से होता है तथा बूंदी में ही मांगली नदी में मिल जाती है।

4. काली सिंध नदी:- इस जलधारा का उदगम देवास मध्य प्रदेश से होता है तथा राजस्थान में प्रवेश रायपुर बिंद्रा झालावाड़ से करती है तथा कोटा के नारेरा नामक स्थान पर चंबल में मिल जाती है।

5. आहू नदी:- इस जलधारा का उदगम सुसनेर मध्यप्रदेश से होता है तथा राजस्थान में नन्दपुर झालावाड़ से प्रवेश करती है तथा झालावाड़ में ही कालीसिंध में मिल जाती है।
Note:- काली सिंध व आहू नदी के संगम पर झालावाड़ में गागरोन का किला स्थित है।

6. परवन नदी:-इस जलधारा का उदगम मालवा का पठार मध्य प्रदेश से होता है तथा राजस्थान में प्रवेश मनोहर थाना झालावाड़ से करती है तथा कोटा में कालीसिंध में अपना जल गिराती है।

7. पार्वती नदी:- इस जलधारा का उदगम मध्यप्रदेश से होता है तथा क्षतर पूरा राजस्थान से प्रवेश करती है तथा कोटा में चंबल में मिल जाती है।

● “बनास नदी”:-
उपनाम:- वर्णाशा, वन की आशा, वशिष्ठी नदी।
– बनास नदी चंबल की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
– बनास नदी राजस्थान के अंदर ही अंदर पुर्णतः राजस्थान में बहने वाली सबसे लंबी नदी है।(480किलोमीटर)
– बनास नदी में सर्वाधिक जलग्रहण क्षमता है।
– बनास नदी टोंक जिले में सर्पाकार में बहती है।
– इस जलधारा का उदगम खमनोर की पहाड़ी राजसमंद से होता है।
– राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक में बहती हुई खण्डार गाँव रामेश्वर नामक स्थान सवाईमाधोपुर में चंबल में मिल जाती है।
– बनास बेसिन मुख्यतः 12 जिलों में फैला हुआ है।
– सर्वाधिक बेसिन क्षेत्र भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
– बनास नदी राजस्थान के कुल अपवाह क्षेत्र का 9.80% है। जो राजस्थान की समस्त नदियों में सर्वाधिक है।

“बनास की सहायक नदियां”:-

1. कोठारी नदी :-
इस जलधारा का उदगम दिवेर की पहाड़ियां राजसमंद से होता है। तथा नंदराय कस्बा भीलवाड़ा में बनास में मिल जाती है।

Note:- हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इस नदी का उदगम दौरेरा भीलवाड़ा को बताया गया है।
– कोठारी नदी पर ही भीलवाड़ा में मेजा बांध बना हुआ है तथा इस बांध की पाल को ग्हीन माउण्ट के नाम से जाना जाता है।

2. आयड़ / बेड़च नदी:-
इस नदी का उदगम गोगुंदा उदयपुर से होता है तथा इस नदी के किनारे ही आहड़ सभ्यता का विकास हुआ, उदयसागर झील से आगे इस जलधारा को बेड़च नदी के नाम से जाना जाता है।
– तथा यह नदी भीलवाड़ा में बनास में मिल जाती है।

3. मेनाल नदी:-
इस जलधारा का उदगम मांडलगढ़ भीलवाड़ा से होता है तथा बीगोद भीलवाड़ा में बनास में मिल जाती है।
– अतः बनास, बेड़च, मेनाल नदियों का त्रिवेणी संगम होता है।

4. खारी नदी:-
इस जलधारा का उदगम बिजरोल की पहाड़ी राजसमंद से होता है तथा राजमहल टोंक में बनास में मिल जाती है।

5. डाई नदी:-
इस जलधारा का उदगम किशनगढ़ अजमेर से होता है। तथा राजमहल टोंक में अपना जल बनास में गिरा देती है।
– अतः बनास,खारी, डाई नदियों का त्रिवेणी संगम होता है।
– बनास नदी पर ही टोंक जिले में बीसलपुर बांध बना हुआ है जो राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है।
– इस परियोजना से टोंक, अजमेर, जयपुर, सवाईमाधोपुर जिले लाभान्वित हो रहे हैं।
– सवाईमाधोपुर जिले में बनास नदी पर ईसरदा बांध बना हुआ है।
– रामेश्वर नामक स्थान पर चंबल, बनास, सीप नदियों का त्रिवेणी संगम होता है।

Note:- गंभीरी नदी का प्रवाह क्षेत्र चित्तौड़गढ़ गंभीर नदी करौली में बहती है। कालीसिंध नदी का प्रवाह क्षेत्र- झालावाड़,करौली जिले में है।

बाणगंगा / अर्जुन की गंगा:-
– इस नदी को ताला नदी, रुण्डिता नदी भी कहते हैं।
– इस जलधारा का उदगम मेड गांव की पहाड़ी बैराठ जयपुर से होता है।
– जयपुर,दौसा, भरतपुर में बहती हुई फतेहाबाद उत्तर प्रदेश में अपना जल यमुना में गिराती है।
– यह राजस्थान से उदगम होने वाली वह नदी है जो सीधे अपना जल यमुना में गिराती है इस नदी पर जयपुर में जमुवा रामगढ़ बांध बना हुआ है।
– इस नदी के क्षेत्र में भरतपुर में अजान बांध स्थित है जिससे केवलादेव उद्यान को जल की आपूर्ति की जाती है। अतः अजान बांध को केवलादेव की जीवन रेखा कहा जाता है।

“बाण गंगा की सहायक नदी”:- गुमटीनाला,सूरी नदी, सावा नदी, पालासन नदी आदि।

● अरब सागर में जल गिराने वाली नदियां:-
अरे – अरबसागर
जा – जाखम
सासु – साबरमती, सुकड़ी
सो – सोम
प. – पश्चिमी बनास
मालूम- माही, लूनी
कर …..
ले……

● अरबसागर:-
– कच्छ का रन- लूनी,बनास
खम्भात की खाड़ी- माही, साबरमती।

● खम्भात की खाड़ी की ओर ले जाने वाली नदियां:-

1. माही नदी:-
उपनाम- दक्षिण राजस्थान की गंगा, बागड़ के गंगा, दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा, आदिवासियों की गंगा।
– सुजलाम सुफलाम क्रांति का संबंध इसी नदी से है।
– कालिदास ने इस नदी को अंत सलीला कहा है।
– माही नदी का प्रवाह क्षेत्र अंग्रेजी के उल्टे U / V आकार में है।
– माही नदी विश्व की एकमात्र नदी है जो कर्क रेखा को दो बार काटती है।
– बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ में माही नदी का प्रवाह क्षेत्र छप्पन के मैदान के नाम से जाना जाता है।
– इस नदी का उदगम महेंद्र झील अमरोरु की पहाड़ी मध्यप्रदेश से होता है।
– मध्यप्रदेश में बहती हुई है यहा नदी खांदू गांव बांसवाड़ा से राजस्थान में प्रवेश करती है।
– बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, गुजरात में बहती हुई खम्भात की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
– माही नदी में बांसवाड़ा में माही बजाज सागर परियोजना स्थित है।
– राजस्थान व गुजरात की संयुक्त परियोजना है तथा इसकी हिस्सेदारी 45:55 है।
– माही नदी पर ही गुजरात में कडाना बांध बना हुआ है।
– माही बेसिन का क्षेत्र 5 जिलों में फैला हुआ है। सर्वाधिक बेसिन क्षेत्र उदयपुर जिले में स्थित है।

” माही की सहायक नदियां”:-
1. जाखम नदी:-
इस नदी का उदगम छोटी सादड़ी भंवर माता का मंदिर से होता है तथा यह नदी बेणेश्वर डूंगरपुर में माही में गिर जाती है।
– इसी नदी पर प्रतापगढ़ में जाखम बांध बना हुआ है जो राजस्थान का सबसे ऊंचा बांध है।

2. सोम नदी:-
इस जलधारा का उदगम बिछामेड़ा की पहाड़ी उदयपुर से होता है तथा बेणेश्वर डूंगरपुर में माही में मिल जाती है।
– इस नदी पर उदयपुर में सोनकागदर बांध स्थित है जबकि डूंगरपुर में सोम कमला अंबा परियोजना स्थित है।

3. ऐराव नदि:-
इस नदी का उदगम प्रतापगढ़ की पहाड़ियों से होता है तथा सेमलिया गांव बांसवाड़ा में माही मिल जाती है।

4. चाप नदी:-
इस नदी का उदगम कालिंजरा की पहाड़ी बांसवाड़ा से होता है तथा बांसवाड़ा में ही माही में मिल जाती है।

5. अनास नदी:-
इस नदी का उदगम आम्बेर गाँव मध्यप्रदेश से होता है तथा मेलेडी खेड़ा बांसवाड़ा से राजस्थान में प्रवेश करती है तथा गलीया कोठ के समीप माही वे मिल जाती है।

6. मोरेल नदी:-
इस नदी का उदगम डूंगरपुर की पहाड़ियों से होता है तथा डूंगरपुर में ही माही नदी में मिल जाती है।

7. इरु,नोरी,हरण, भादर आदि माही की सहायक नदियाँ हैं।

● साबरमती नदी:-
इस नदी का उदगम उदयपुर के कोठडा क्षेत्र से होता है तथा गुजरात में प्रवेश साबरकांठा जिले से करती है।
– निरंतर बहती हुई खंभात की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
– इस नदी की कुल लंबाई 416 किलोमीटर है जबकि राजस्थान में 45 किलोमीटर है।
– इस नदी का उदगम तो राजस्थान से होता है परंतु इसका महत्व गुजरात के लिए है।
– यह गुजरात की सबसे प्रदूषित नदी बताई गई है।
– गुजरात की राजधानी गांधीनगर व भारत का मैनचेस्टर अहमदाबाद इसी नदी के किनारे स्थित है।
– महात्मा गांधी का सत्याग्रह आश्रम इसी नदी के किनारे स्थित है।
– साबरमती बेसिन का क्षेत्र चार जिलों में है। सर्वाधिक बेसिन क्षेत्र उदयपुर जिले में है।
– मानसी, वाकल,सेई, हथमती, पेशवा, वितरक, माजम, आदि साबरमती की सहायक नदी है।
– मानसी – वाकल परियोजना उदयपुर जिले में स्थित है यह राजस्थान की जल सुरंग आधारित पहली परियोजना है।

● “कच्छ के रनमें गिरने वाली नदियाँ”:-

“लूनी नदी” :-
इस नदी का प्रवाह क्षेत्र अच्छी वर्षा वाले क्षेत्रों में निम्न वर्षा वाले क्षेत्र की ओर है।
– उपनाम:- साक्री, सागरमती, लवणवती, मीठी खारी नदी, मरु गंगा आदि।
– लूनी नदी पश्चिम राजस्थान की सबसे लंबी नदी है। इसकी कुल लंबाई 495 किलोमीटर है जबकि राजस्थान में 330 किलोमीटर है।
– इस नदी का उदगम नाग की पहाड़ी पुष्कर अजमेर से होता है। तथा उदगम स्थल पर इसे साक्री / सागरमती के नाम से जाना जाता है।
– अजमेर, नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर में बहती हुई कच्छ के रन में अपना जल गिराती है।
– प्रारंभ में इस नदी का जल मीठा होता है परंतु बालोतरा बाड़मेर से आगे लवणीय भूमि होने के कारण इसका जल खारा हो जाता है। अतः इसे लवणवती, मीठी खारी के नाम से भी जाना जाता है।
– लुणी नदी जालौर जिले में छोटी-छोटी शाखाओं में होकर बहती है जिससे दलदली भूमि का निर्माण होता है जिसे नेहड़ / नाडा के नाम से जाना जाता है।
– पुष्कर अजमेर में यदि भयंकर वर्षा होती है तो बालोतरा बाड़मेर में बाढ़ आती है।
– लूनी नदी पर जोधपुर जिले में बिलाड़ा बांध बना हुआ है।
– लूनी बेसिन 11 जिलों में फैला हुआ है। सर्वाधिक बेसिन क्षेत्र बाड़मेर जिले में है।

●” लूनी नदी की सहायक नदियाँ”:-

1. जोजड़ी नदी:-
इस जलधारा का उदगम पाडलू गाँव नागौर से होता है तथा गुढा बाड़मेर में लूणी में मिल जाती है। यह लूणी की एकमात्र सहायक नदी है जिसका उदगम अरावली पर्वत माला से नहीं होता है अर्थात यह लूणी के दायी ओर से मिलती है।

2. बांडी नदी:-
इस नदी का उदगम पोलावास पाली से होता है तथा पाली में ही लूणी में मिल जाती है।
– बांडी की सहायक नदी गुहिया है अर्थात यह नदी लूनी नदी तंत्र का हिस्सा है।

3. सुकड़ी नदी:-
इस नदी का उदगम देसूरी की नाल पाली से होता है तथा समदड़ी बाड़मेर में लूणी में मिल जाती है।
– बाकली बांध जालौर जिले में इसी नदी पर स्थित है।

● “पश्चिमी बनास नदी”:-
– इस जलधारा का उदगम सनवरा सिरोही से होता है। सिरोही में बहती हुई गुजरात में प्रवेश बनासकांठा जिले से करती है। निरंतर बहती हुई कच्छ के रन में अपना जल गिराती है।
– गुजरात का डीसा शहर इसी नदी के किनारे बसा हुआ है।
– इस नदी का सर्वाधिक बेसिन क्षेत्र सिरोही जिले में स्थित है।
– गोहलन, कुकड़ी, सुकली आदि पश्चिमी बनास की सहायक नदियां है।

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