राजस्थान में जल संरक्षण,संग्रहण एवं प्रबंधन
राजस्थान में जल संरक्षण,संग्रहण एवं प्रबंधन | राजस्थान में जल संरक्षण की परम्परागत विधियाँ –
जल संरक्षण का अर्थ-
जल का उचित एंव आवश्यकता अनुसार उपयोग एंव भविष्य के लिए सुरक्षित रखना | अर्थात जल का दुरुपयोग रोककर स्वच्छ जल को चिर कल तक बचाकर रखना जल संरक्षण कहलाता हैं |
दरअसल राजस्थान का अधिकांश हिस्सा रेगिस्तानी हैं जहाँ पर प्राय: बहुत कम वर्षा होती हैं,अत: राजस्थान के निवासीयों ने अपने क्षेत्र के अनुसार जल का भंडार एंव प्रबंधन किया हैं जो की निम्न हैं |
टोबा-
यह नाडी के समान ही आकृति वाला होता होता हैं परन्तु यह नाडी से अधिक गहरा होता हैं ऐसी भूमि जहाँ पानी का रिसाव कम होता हैं वहां पर टोबा का निर्माण उपयुक्त माना जाता हैं
झालरा-
झालरा का कोई जल स्रोत नही होता हैं वह से ऊंचाई पर स्थित झीलों तथा तालाबो के रिसाव से जल प्राप्त करते हैं • झालरा का कोई आगोर नही होता हैं, • इसका पानी पिने के काम में नही लिया जाता हैं, बल्कि इसके जल का उपयोग धार्मिक कार्यो तथा सामूहिक स्नान आदि कार्यो में किया जाता हैं |
पायतन–
वर्षा के जल को टांका या कुण्ड में उतारने के लिए जो उसके चारो और मिटटी को दबाकर या जमाकर पायतन बनाया जाता हैं • मुख्यत कुण्ड तथा टांके के लिए पायतन शब्द का प्रयोग किया जाता हैं |
आगोर
तलाव के चारो और की पक्की भूमि आगोर कहलाती हैं • आगोर से ही बहकर जल तलब में आता हैं |
नेहटा-
अतिरिक्त जल की निकासी के लिए नेह्टा बनाया जाता हैं जिससे होकर जल पास स्तिथ खेत\तालाब\नाडी में चला जाता हैं | अर्थात अतिरिक्त जल निकासी के लिए जो पाईप या नाली बनायीं जाती हैं हैं|
बेरी-
छोटा कुआं या कुयी को ही मारवाड़ में बेरी कहा जाता हैं |
टांका-
रेतीले मरुस्थलीय भागो में वर्षा जल को संग्रहित करने के लिए बनाया गया भूमिगत हौद टांका या कुण्ड कहलाता हैं | • इसे पक्का बनाया जाता हैं तथा उपर से ढककर उपर अक छोटी खिड़की छोड़ दी जाती हैं | • प्राय घरो, खेतो में इससे बनाया जाता हैं |
बेरा-
नाडी के आसपास भूमिगत पानी को निकालने के लिए को ही मारवाड़ में बेरा कहते हैं |
चौतीना या चौलावा –
चार – चड़सो के द्वारा चारो दिशाओ में ऐक साथ पानी खीचने पर भी पानी न टूटने वाले कुए को चौतीना या चौलावा कहते हैं |
मदार-
नाडी या तालाब में जल आने के निर्धारित की गयी धरती की सीमा को मदार कहा जाता हैं
बावड़ी-
भूमिगत जल को प्राप्त करने के लिए भूमि में बनाये गए सीढ़ीदार कुएं बावड़ी कहलाते हैं |