राजस्थान में वन सम्पदा – “वन वनस्पति”
- प्रारंभ में यह विशेष राज्य सूची में था परंतु 42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा इसे समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
अर्थात इस विषय पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं परंतु विवाद की स्थिति में केंद्र का कानून मान्य होगा। - रुख भायला :- वृक्ष मित्र
- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उगता हुआ वृक्ष प्रगतिशील राष्ट्र का परिचायक बताया है।
- 1604 में जोधपुर के रामसडी गांव में कर्मा व गोरा नामक दो महिलाओं में पेड़ों की रक्षार्थ हेतु आत्मबलिदान दिया था ।
- 1700 ई. में नागौर के पोलावास गांव में वूचोजी ने पेड़ों की रक्षा हेतु आत्मबलिदान दिया था।
- 1730 में खेजड़ली गांव में अमृता देवी विश्नोई व उसके पति रामो के नेतृत्व में 363 लोगों ने पेड़ों की रक्षार्थ हेतु आत्मबलिदान दिया ।
- भाद्रपद शुक्ल दशमी को विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला खेजड़ली गांव में भरता है।
- उत्तराखंड में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में चले चिपको आंदोलन का प्रेरणा स्रोत खेजड़ली की घटना रही हैं।
- बिश्नोई संप्रदाय के लोगों के द्वारा पेड़ों की रक्षार्थ में दिया गया बलिदान खडाणा कहलाता है।
- राजपूतों की पहली रियासत जोधपुर रियासत थी जिसने 1910 में पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाया था।
पर्यावरण से सम्बन्धित दिवस
- खेजड़ी दिवस 12 सितंबर को मनाया जाता हैं।
- पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल को मनाया जाता हैं।
- तथा ओजोन दिवस 16 सितंबर को मनाया जाता है।
- विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता हैं।
- भारत में सबसे पहले ब्रिटिश काल में 1855 में लॉर्ड डलहौजी के द्वारा वन नीति की घोषणा की गई।
जिसके अनुसार जितने भी इमारती लकड़ी के पेड़ है। वे सभी सरकार के अधीन है। - स्वतंत्रता के पश्चात 1952 में भारत की प्रथम राष्ट्रीय वन नीति घोषित की गई जिसके अनुसार कुल क्षेत्रफल के 33.33% भू – भाग पर वन होने चाहिए।
- भारत की नई वन नीति 1998 में लागू की गई।
- राजस्थान की वन नीति 18 फरवरी 2010 को घोषित की गई।
- राजस्थान की कुल क्षेत्रफल के 9 .59 % भाग पर वन है। इस दृष्टि से राजस्थान का देश में नवां स्थान है।
- राजस्थान एकमात्र राज्य है जिसमें लगातार वनों की स्थिति में वृद्धि देखने को मिली है।
- 2017 के अनुसार राजस्थान का वन क्षेत्रफल 32,737 वर्ग किलोमीटर हैं।
- राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत वन क्षेत्र 9.57% हैं।
- प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र 0.04% हेक्टेयर हैं।
- सर्वाधिक वन संपदा वाला जिला उदयपुर (23.58%) हैं।
- न्यूनतम वन संपदा वाला जिला चूरु(45%)हैं।
- देश में वन सर्वेक्षण का कार्य केंद्रीय वन अनुसंधान संगठन देहरादून के द्वारा प्रति 2 वर्षों में किया जाता है।
- राजस्थान में कुल प्रादेशिक वन मण्डल 38 है।
- प्रशासनिक नियंत्रण के आधार पर वनों को 13 मंडलों में विभाजित किया गया है।
- सबसे बड़ा वन मंडल जोधपुर व सबसे छोटा वन मंडल सिरोही है।
● “खेजड़ी“:-
- 31 अक्टूबर, 1983 को खेजड़ को राज्य वृक्ष घोषित किया गया।
- इसे थार का कल्पवृक्ष, राजस्थान का गौरव भी कहते हैं।
- खेजड़ी की पत्तियों को ‘लूम’ एवं इसकी फलियों को ‘सांगरी’ कहा जाता हैं।
- खेजड़ी को स्थानीय भाषा मे जांटी कहा जाता हैं। तथा धर्म ग्रन्थों में इसे शमी वृक्ष कहा जाता था।
- खेजड़ी की पूजा दशहरे के दिन की जाती है।
- खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम प्रोसेसिप सेनेरीया है।
- 1991 में खेजड़ी वृक्ष को बचाने के लिए ऑपरेशन खेजड़ा की शुरुआत की गई।
● “पलास / ढ़ाक”:-
- इसको जंगल की आग कहते हैं।
- यह राजसमंद जिले में सर्वाधिक पाया जाता है।
- पलास का वैज्ञानिक नाम ‘ब्यूटिया मोनोस्पर्मा’ है।
● “रोहिड़ा”:-
- 31 अक्टूबर 1983 को रोहिड़ा को राज्य पुष्प घोषित किया गया तथा इसे मारवाड़ टीक, राजस्थान का सागवान भी कहते हैं।
- इसका वैज्ञानिक नाम टिकोमेला अण्डूलेटा हैं।
- इसकी लकड़ी का उपयोग
- ‘बंदूक की बट’ बनाने में किया जाता हैं।
● “बाँस”:-
- यह एक प्रकार की घास है जो सर्वाधिक बांसवाड़ा में पाई जाती है।
– इसे आदिवासियों का हरा सोना भी कहते हैं।
● “महुआ”:-
- यह सर्वाधिक डूंगरपुर में पाया जाता है तथा इसे आदिवासियों का कल्पवृक्ष भी कहते हैं।
- इससे मावड़ी शराब बनाई जाती है। तथा इस शराब का उपयोग भील जनजाति के लोग करते हैं।
● ” तेंदू “:-
- सर्वाधिक हाड़ौती क्षेत्र में पाया जाता है। इसके पत्ते को टिमरू कहते हैं।
- इसके पत्ते से बीड़ी बनाई जाती है
- गोंद का सर्वाधिक उत्पादन चौहटन बाड़मेर में होता है।
- जामुन का सर्वाधिक उत्पादन माउंट आबू में होता है तथा यह मधुमेह में उपयोगी होता है।
● “शहतूत “:-
- यह सर्वाधिक उदयपुर मिलता है।
- इस वृक्ष पर रेशम के कीट पाले जाते हैं।
● “खैर”:-
- यह सर्वाधिक उदयपुर, चित्तौड़गढ़ में होता है।
- कथौड़ी जनजाति द्वारा हाड़ी पद्धति से कत्था तैयार किया जाता है।
● भौगोलिक लक्षणों के आधार पर राजस्थान के वनों को सामान्यतय पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है:-
1. “शुष्क सागवान वन”:- इस प्रकार के वन दक्षिणी राजस्थान के 75 -110 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं ।
– राजस्थान के कुल वनों में इनकी भागीदारी 7% है।
– राजस्थान में सर्वाधिक सागवान बांसवाड़ा, डूंगरपुर बेल्ट में पाया जाता है।
– इन्हीं वनों में गूलर, महुआ, तेंदू, बरगद, आदि वृक्ष शामिल होते हैं।
2. “उष्ण कटिबंधीय धौंक वन”:– इस प्रकार के वन राजस्थान में सर्वाधिक पाये जाते हैं।(58.19%)
– उष्ण कटिबंधीय धौंक वनों का मुख्यतः विस्तार 30 -60 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में हैं।
– राजस्थान में सर्वाधिक धोकडा करौली जिले में पाया जाता हैं। जिनका मुख्यत उपयोग कोयला निर्माण में होता हैं।
3. “उष्ण कटिबंधीय मिश्रित पतझड़ वन”:- इस प्रकार के वन सामान्यतः पूर्वी मैदानी क्षेत्र के 50 – 80 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं।
– राज्य की कुल वन संपदा में इनकी भागीदारी 28.42% है।
– इन वनों में शीशम, साल, आदि के वृक्ष शामिल होते हैं।
4. “उष्ण कांटेदार वन”:– इस प्रकार के वन पश्चिमी राजस्थान के 30 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
– राज्य के कुल वनों में उष्ण कांटेदार वनों भागीदारी 6.23% है।
5. “उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन”:- इस प्रकार के वन 125 -150 सेंटीमीटर वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
– राजस्थान में इस प्रकार के वन माउंट आबू पर्वतीय क्षेत्र में पाए जाते हैं।
– राज्य की कुल वन सम्पदा में इनकी भागीदारी 0.38% है।
– इस प्रकार के वन सदैव हरे रहते हैं। अतः इन्हें सदाबहार वन कहा गया है।
● प्रशासनिक आधार पर वनों का वर्गीकरण :-
1. “आरक्षित वन”:-
ऐसे वन जो सरकार के द्वारा पूर्ण नियंत्रित होते हैं।
– आरक्षित वनों में कटाई – चराई, प्रवेश निषेध होता है।
– कुल वनों में इनकी हिस्सेदारी 37.63% है।
– इस प्रकार के वन सर्वाधिक उदयपुर जिले में पाए जाते हैं।
2. “सुरक्षित वन”:-
ऐसे वन जिन पर सरकार का नियंत्रण होता है परंतु वन विभाग की अनुमति से सूखी लकड़ी के ठेके दिए जाते हैं तथा चराई हो सकती है।
– कुल वनों में इनकी हिस्सेदारी 56.8% है।
– इस प्रकार के सार्वजनिक वन बारां जिले में पाए जाते हैं।
3. “अवर्गीकृत वन”:-
ऐसे वन जो वन विभाग के अधीन है।
– इनमें पशुओं को चराने की स्वतंत्रता होती है।
– कुल वनों में इनकी हिस्सेदारी 6.29% है तथा इस प्रकार के सार्वजनिक वन बीकानेर जिले में पाए जाते हैं।
● “महत्वपूर्ण तथ्य”:-
– सेवण, धामण, करड़, अंजन पश्चिमी राजस्थान में पाई जाने वाली घासे हैं।
– सेवन पश्चिमी राजस्थान की सबसे लंबी घास है तथा इससे गोडावण की शरण स्थली कहा जाता है।
● ” बूर “:- यह पश्चिमी राजस्थान में पाई जाने वाली सुगंधित घास है जो बीकानेर के श्रीडूंगरगढ़, कोलायत, देशनोक व चूरू के सरदार शहर में मिलती हैं।
– बूर की अन्य उपजाति ‘ओलेवेरी’ है। जो जोधपुर में पाई जाती है।
● ” खस “:– एक प्रकार की सुगंधित घास है जिसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन में किया जाता है।
– यह घास भरतपुर, सवाई माधोपुर, टोंक जिलों में पाई जाती है।
– मेथा, ऐन्चा घास भरतपुर में पाई जाती है।
– ऐन्चा घास केवलादेव उद्यान में मिलती है तथा इसमें उलझकर सर्वाधिक पक्षी मरते हैं।
– अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार की शुरुआत 1994 में की गई।
– वृक्षारोपण, वन सुरक्षा, वन्य जीव सुरक्षा के क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के लिए अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार पुरस्कार दिया जाता है।
– यदि यह पुरस्कार किसी संस्था को दिया जाता है तो 1 लाख तथा व्यक्तिगत स्तर पर दिया जाए तो 50 हजार तक की राशि दी जाती है।
– कैलाश सांखला वन्यजीव पुरस्कार 50,000
– राजीव गांधी पर्यावरण पुरस्कार की शुरुआत 2012 में की गई थी।
– मरुस्थल वृक्षारोपण कार्यक्रम की शुरुआत 1978 में हुई, 10 जिलों में यह कार्यक्रम चल रहा है।
– इसमें केंद्र व राज्य की भागीदारी 75:25 हैं।
– हरित राजस्थान योजना एक पंचवर्षीय योजना थी जो 2009 से 2014 तक चलाई गई थी।
– राजस्थान में घास के मैदान या चरागाहों को स्थानीय भाषा में’ बीड़’ कहा जाता हैं।
– राजस्थान में राजसमंद जिले के हल्दीघाटी( खमनौर) व देलवाड़ा क्षेत्र के वनों में चंदन के पेड़ों की अधिकता होने से
‘ चंदन वन’ के नाम से जाने जाते हैं।