🔜राजस्थान सामान्य ज्ञान
(1) सुपासनाह चित्रित ग्रन्थ का चित्रकार हिरानन्द था
(2) कार्रले खंडालवाला ने 17वी और 18 वी शताब्दी को राजस्थानी चित्रकला का स्वर्ण युग कहा हैं
(3) राजस्थानी चित्रकला का उधभव 15वी 16 वी सदी के लगभग अपभरंश शैली से माना जाता हैं
(4) राजस्थान चित्रकला का सबसे पहले विभाजन आंनद कुमार शवामी ने राजपूत पेंटिंग नामक पुस्तक मे किया हैं
(5) राजस्थानी चित्रकला का प्रथम चित्रकार क्षरग्धर को माना जाता हैं
(6) मोरनी मांडना लोक चित्रकला मीणा जनजाति से संबंधित हैं
(7) जोतदान चित्रों का एक संग्रह हैं
(8)सांझी लोक चित्रकला मे गोबर से बनाया गया पूजा स्थल सांझी कहलाता हैं
(9) मांडना – अलकृत करना
(10)कागज पर बने विभिन्न देवी देवताओं के चित्र पाने कहलाते हैं
प्र11 व्यक्ति शैली की चित्र जयपुर शैली की प्रमुख विशेषता हैं
प्र12 मेवाड राजस्थान शैली का उधगम स्थल हैं
प्र13 राग माला मेवाड शैली का प्रमुख चित्र हैं जो दिल्ली के अजायबघर मे सुरक्षित हैं
प्र 14 श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चुर्णी 1260 मे निर्मित मेवाड शैली का प्रथम चित्रित ग्रन्थ हैं
प्र15 कृपाराम, भेरुराम, हीरानन्द, जगनाथ, कमल चंद, मनोहर मेवाड़ शैली के प्रमुख चित्रकार हैं
प्र 16 महाराणा कुम्भा ने मेवाड शैली को विकसित करने मे प्रमुख योगदान दिया
प्र17 राजस्थान मे चित्रकला का जनक महाराणा कुम्भा को माना जाता हैं
प्र18 जगतसिंह प्रथम के शासन काल को मेवाड का लघु चित्रकला का सवर्ण काल कहा जाता हैं
प्र19मेवाड़ शैली का सर्व प्रथम मूल शवरूप प्रतापगढ़ मे चित्रित चोर पंचालिखा ग्रन्थ के चित्रों मे दिखाई देता हैं
प्र20 कलीला और दमना मेवाड शैली मे चित्रित पंचतंत्र कहानी के दो पात्र हैं
प्र21 चीतेरो की ओवरी (तशवीरा रो कारखाना ) उदयपुर के राज महल मे स्तापित चित्रकला का विद्यालय हैं
प्र22 चीतेरो की ओवरी विधालय जगत सिंह प्रथम ने बनाया था
प्र23 देवगढ़ चित्रकला शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय डॉक्टर श्रीधर अंधारे को दिया जाता है|
प्र24 कमला व इलायची नाथद्वारा शैली की महिला चित्रकार है|
प्र25 साहिब राम ने महाराजा ईश्वरी सिंह का आदम कद चित्र बनाया
प्र26 किशनगढ़ शैली कांगड़ा शैली और ब्रज साहित्य से प्रभावित है|
प्र27 नाक में पहने जाने वाली वेसरी आभूषण का एकमात्र चित्रण किशनगढ शेली में मिलता है|
प्र28 एरिक डिक्शन डॉ फैयाज अली किशनगढ़ शैली के खोजकर्ता है|
प्र29 सावंत सिंह (नागरी दास इन के शासन को किशनगढ़ शैली का स्वर्ण युग माना जाता है|
प्र30 चांदनी रात की संगोष्ठी किशनगढ़ शैली का प्रमुख चित्र है|
प्र31 17 वी शताब्दी मे बूँदी मे उत्कृष्ट चित्र बने
प्र32 बूँदी नरेश राव रतन सिंह हाड़ा को जहाँगिर दारा उन्हें चित्र कला प्रेम के कारण सरबुलंद राय की उपाधि दी थी
प्र33 चटकिले रंग का प्रयोग बूँदी शैली की मुख्य विषेसता हैं
प्र34 कोटा चित्रशेली के जन्म दाता रामसिंह थे
प्र35 बूँदी महाराव उम्मेदसिंह दारा तारागढ़ मे निर्मित चित्रकला (रंग शाला ) को भीति चित्रों का स्वर्ग कहा जाता हैं
प्र36 शेखावाटी क्षेत्र राजस्थान की ओपन एयर आर्ट गेलरी के लिए प्रसिद्ध हैं
प्र37 राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर मे स्थित हैं
प्र39 वेश्यायो के चित्र केवल अलवर चित्र शैली मे बने हैं
प्र40राजस्थान मे सर्व प्रथम आला गिला पद्धति का प्रारंभ आमेर में हुआ
प्र41 राजस्थान में हस्तकला का सबसेबड़ा केंद्र बोरानाडा जोधपुर में है|
प्र42 कठपुतली अरड़ की लकड़ी से बनाई जाती हैं
प्र43 दादी पदमजी कठपुतलियों की जादूगर नाम से प्रसिद्ध ह
प्र44 बगरू प्रिंट जयपुर की प्रसिद्ध हैं
प्र45 बगरू की छपाई मलमल के कपड़े पर की जाती हैं
प्र46 1976 1979 बगरू के छिपो की छपाई का स्वर्ण काल था
प्र47 कटकी मे छपने वाले अलंकरण को पावली कहते हैं
प्र48 ताम्बे पर मीनाकारी के लिए भीलवाड़ा प्रसिद्ध हैं
प्र49 कोटा मसुरियो साडी के लिए प्रसिद्ध हैं
प्र50 मिटी के बर्तन बनाने की कला को पोटरी कहते हैं
प्र51 गोटे से बने फूल को बिजिया कहते है|
प्र52 बादले की झालर को किरण कहते हैं
प्र53सुनहरा तार, जिसमे कढ़ाई की जाती हैं उसे कला बतु कहते हैं
प्र54 कला बतु जयपुर का प्रमुख केंद्र हैं
प्र55पोटरी कला का प्रथम प्रचलन मुग़ल शासक के समय हुआ
प्र56 स्त्रियों की लाल रंग की ओढ़नी जिस पर धागों की कशीदाकारी होती हैं उसे मारवाड़ में दामनी कहां जाता है|
प्र57 राजस्थान में ब्लू पॉटरी का प्रारंभ आमेर के मानसिंह प्रथम के शासनकाल में 16वीं शताब्दी में हुआ
प्र58 ब्लू पॉटरी का सर्वाधिक विकास आमेर के शासक सवाई रामसिंह द्वितीय के समय में हुआ था
प्र59 कृपाल सिंह शेखावत ब्लू पॉटरी के प्रसिद्ध कलाकार हैं
प्र60 ब्लैक पॉटरी कोटा की प्रसिद्ध है|
प्र61 उस्ता कला बीकानेर की प्रसिद्ध है|
प्र62हनीफ ऊश्ता ने अजमेर के ख्वाजा साहब की दरगाह पर स्वर्ण नकासी का कार्य किया
प्र63 मारवाड़ में ऊंट के बच्चे को तोडियो कहा जाता है|
प्र64 ऊंट के बच्चे जिसके मुलायम वालों को सूत के साथ धागा मिलाकर कपड़ा तैयार किया जाता है| इसे बाखल कहां जाता है|
प्र65 मोलेला गांव टेराकोटा के लिए प्रसिद्ध है|
प्र66 पावर रजाई जयपुर की प्रसिद्ध है|
प्र67 मारवाड़ में कांच की चूड़ियां को का कातरिया कहां जाता है|
प्र68 ऊंट की खाल पर कलात्मक चित्रण करना उस्ता कला कहलाता है|
प्र69 उस्ता कला बीकानेर की प्रसिद्ध है|
प्र70 जोधपुर के बादले प्रसिद्ध है|
थेवा कला एक नजर मे
(71) थेवा कला प्रतापगढ़ की प्रसिद्ध हैं
(72) “थेवा” नाम की उत्पत्ति इस कला के निर्माण की दो मुख्य प्रक्रियाओं ‘थारना’ और ‘वाड़ा’ से मिल कर हुई
(73) थेवा कला में पहले कांच पर सोने की बहुत पतली वर्क या शीट लगाकर उस पर बारीक जाली बनाई जाती है|, जिसे थारणा कहा जाता है|।
(74)थेवा के दूसरे चरण में कांच को कसने के लिए चांदी के बारीक तार से फ्रेम बनाया जाता है|, जिसे “वाडा” कहा जाता है|।
(75) थेवा 17वीं शताब्दी में मुग़ल काल में राजस्थान के राजघरानों के संरक्षण में पनपी ए
(76) थेवा कला के लिए प्रतापगढ़ का सोनी परिवार प्रसिद्ध हैं
(77) थेवा कला पर 2002 मे डाक विभाग दारा डाक टिकट जारी किया था
(78) थेवा कला के शिल्प चित्रण को 23 केरेट सोने के पत्तर पर ‘टांकल’ नामक एक विशेष कलम से उकेरा जाता है|
(79) प्रारम्भ में थेवा का काम लाल, नीले और हरे रंगों के मूल्यवान पत्थरों हीरा, पन्ना आदि पर ही होता था,
(80) , थेवा कला की प्रतिनिधिसंस्था राजस्थान थेवा कला संस्थान प्रतापगढ़ को इस अनूठी कला के संरक्षण में विशेषीेकरण के लिए वस्तुओं का भौगोलिक उपदर्शन (रजिस्ट्रीकरण तथा संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत् ज्योग्राफिकल इंडिकेशन संख्या का प्रमाणपत्र प्रदान किया गया है|।
(81) अजरक प्रिंट बाड़मेर की प्रसिद्ध है|
(82) अजरक प्रिंट में लाल और नीले रंग का प्रमुख प्रयोग होता है|
(83) खत्री जाति अजरक प्रिंट के कार्य को करने के लिए प्रसिद्ध है|।
(84) मलिर प्रिंट बाड़मेर की प्रसिद्ध है|
(85)मोम का दाबू सवाई माधोपुर का प्रसिद्ध है|।
(86)गेहूं का दाबू (सांगानेर व बगरू) जयपुर का प्रसिद्ध है|
(87)मिट्टी का दाबू बालोतरा (बाड़मेर) का प्रसिद्ध है|।
(88) बगरू प्रिंट में काले रंग की प्रधानता हैं।
(89) मैण छपाई सवाई माधोपुर की प्रसिद्ध हैं
(90)टुकडी प्रिंट जालौर की प्रसिद्ध है|
(91) नम दीवार पर चूने के माध्यम से देवीदेवताओं का चित्रण मथैरणा कला है|।
(92)मथैरणा कला बीकानेर की प्रसिद्ध हैं
(93) लाल मिट्टी को पकाकर सजावटी सामान बनाने की कला ‘टेराकोटा कला’ कहलाती
(94)कागजी टेराकोटा के लिए अलवर प्रसिद्ध है|।
(95)सुनहरी टेराकोटा के लिए बीकानेर प्रसिद्ध है|।
(96)मिट्टी की फड़ व मांदल नामक वाद्य यंत्र का निर्माण मोलेला में होता है|
(97)राज्य में देवीदेवताओं की गाथाओं को चित्रों के माध्यम से बांचने की कला फड़ कहलाती है|।
(98)फड का प्रधान केन्द्र शाहपुरा (भीलवाड़ा) है|।
(99) फड़ का मुख्य पात्र लाल रंग की पौशाक में तथा हरे रंग की पौशाक से दर्शाया जाता है|
(100) आला गिल्ला कारीगरी को आरायस / पणा / फ्रेस्को बुनो कला भी कहा जाता
(101) आला गिला कारीगरी को यह बीकानेर की प्रसिद्ध कला है|।
(102)आला गिला कारीगरी की कला को मुग़ल सम्राट अकबर के काल में इटली से लाया गया
(103) आला गिला कारीगरी बीकानेर की प्रसिद्ध कला है|
(104)आला गिला कारीगरी कला को मुग़ल सम्राट अकबर के काल में इटली से लाया गया
(105)चमड़े के कार्य के लिए बीकानेर प्रसिद्ध है|।
(106)बीकानेर क्षेत्र में चमड़े से निर्मित जलपात्र कोपी कहलाती है|।
(107)चमड़ा उद्योग के विकास के लिए मानपुरा माचेड़ी में कॉमप्लेक्स की स्थापना की गयी
(108)मोजडी और नौरंगी जूतियाँ जोधपुर की प्रसिद्ध हैं।
(109)नागरी और कामदार जूतियाँ जयपुर की प्रसिद्ध हैं
(110)कसीदाकारी की जूतियां (भीनमाल) जालौर की प्रसिद्ध हैं।
(111)जयपुर को मूर्तिकला का विशेष केन्द्र कहा जाता है|
(112)मूर्तिकला के कारीगर सिलावट कहलाते है|
(113)लाल संगमरमर की मूर्तियों के लिए धौलपुर व थानागाजी (अलवर) प्रसिद्ध है|
(114)भूरे संगमरमर की मूर्तियों के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है|
(115)सफ़ेद संगमरमर की मूर्तियों के लिए जयपुर प्रसिद्ध है|
(116)पीले संगमरमर की मूर्तियों के लिए जैसलमेर प्रसिद्ध है|
(117)काले संगमरमर की मूर्तियों के लिए भैंसलाना (जयपुर) प्रसिद्ध ह
(118)गुलाबी संगमरमर की मूर्तियों के लिए बाबरमाल (उदयपुर) प्रसिद्ध है|।
(119)धीया पत्थर से निर्मित खिलौनें रमकड़ा कहलाते हैं
(120)रमकड़ा उद्योग उद्योग का प्रधान केन्द्र गलियाका्रेट (डूंगरपुर) है|
(121)पार्वती जोशी पहली महिला फड़ चित्रकार है|।लाल जोशी व प्रदीप मुखर्जी (जयपुर) मुख्य फड़ चित्रकार हैं।
(122)तूडिया हस्तशिल्प के लिए राजाखैडा (धौलपुर) प्रसिद्ध है|।यह नकली आभूषण बनाने की कला है|
(123)चांदी के पतले तारों से आभूषण बनाने की कला ताराकशी कला कहलाती है|।इस कला का प्रमुख केन्द्र नाथद्वारा (राजसमंद) है|।
(124)कपडे़ पर भगवान श्रीकृष्ण के जीवन चित्रण की कला ‘पिछवाई कला’ कहलाती है|।
(125)पिछवाई कला नाथद्वारा (राजसमंद) की प्रसिद्ध है|।
(126)पिछवाई कला का विकास मथुरा के कलाकारों द्वारा किया जाता है|
(127)यह कला वल्लभ सम्प्रदाय से संबंधित है|
(128)राॅबर्ट स्केल्टन ने इस कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाई।
(129)फौलाद अथवा लोहे पर सोने की सूक्ष्म कसीदाकारी कोफ्त गिरी कहलाती है|।
(130) अलवर के तलवार साज लोग कोफ्तागिरी कला से जुड़े हुए हैं।उदयपुर के सिकलीगर लोग इस कला से जुड़े हुए हैं।
(131)आभूषणों में नग जड़ने की कला कुन्दन कला कहलाती है|।
(132)कुन्दन कला के लिए जयपुर प्रसिद्ध है|।
(133)कपड़े को काट कर विषेष प्रकार की आकृत्ति से बनी कला चटापट्टी अथवा पेचवर्क कहलाती है|।
(134)पेचवर्क के कार्य के लिए शेखावटी प्रसिद्ध है|।
(135)पेचवर्क के कार्य के लिए प्रसिद्ध गांव तिलोनिया अजमेर में है|