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राजस्थान के लोक देवता(Rajasthaan ke Lok devta)

राजस्थान के लोक देवता(Rajasthaan ke Lok Devta)

प्राचीन समय में राजस्थान की पवन धरा पर कुछ ऐसे महापुरुषों ने जन्म लेकर समाज सुधार एवं धर्म रक्षार्थ ऐसे कार्य किये जिससे ऐसा प्रतीत होता था कि उनमे देवताओं के अंश है या वो किसी देवता के अवतार है।  कालान्तर में उन्हें विभिन्न समुदायों द्वारा पूजनीय मान लिया गया और वे साम्प्रदाय आज भी उन महापुरुषों की पूजा करते है उन्हें लोक देवता भी कहा जाता है। यद्यपि राजस्थान में अनेकों लोकदेवता है जिनमे से प्रमुख लोक देवताओं के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी नीचे दी गई है ।

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता की लिस्ट इस प्रकार है।

राजस्थान के पंच पीर-

  1. गोगाजी
  2. पाबूजी
  3. रामदेव जी
  4. हड़बूजी
  5. मेहाजी
  • यह सब क्षैत्रिय वंश(राजपूत) से है –
  1. गोगा जी
  • जन्म- ददरेवा गांव. राजगढ़ (तहसील)
  • सन  – 1003 विक्रम संवत
  • पिता- जेवर सिंह
  • पत्नी- 1. केलम दे (कोलू मंड. फलोदी)
  •         2. सरियल (यूपी)
  • पुत्र 47
  • भतीजे- 60
  • गुरु- गोरखनाथ जी
  • मेला- भाद्रपद कृष्ण (नवमी गोगा)

उपनाम-

  1. सर्पों के देवता
  2. जहारपीर
  3. गोगापीर
  4. जिंदा पीर मौसेरे भाई- अर्जन-सर्जन
  • प्रतीक- सांप
  • ध्वजा- सफेद
  • मेड़ी- इनके मंदिर को कहा जाता है।
  • घोड़ी का नाम- गोगा बप्पा
  • गोगा राखड़ी – गोगाजी की राखी जिसमें 9 गाँठे होती है जो हल वह हाली के बाँधी जाती है
  • गोगाजी का मंदिर खेजड़ी के नीचे होता है। इसलिए एक कहावत है गांव गांव खेजड़ी गांव गांव गोगा मेड़ी
  1. शीश मेड़ी या शीर्ष मेड़ी– ददरेवा(चूरू)
  • यहां गोगाजी का सिर आकर गिरा था महमूद गजनवी से गायों की रक्षा करते हुए युद्ध के दौरान ।
  • इस मंदिर के किनारे गोरख तालाब है जिसकी मिट्टी को सांप काटे स्थान पर लगाने पर जहर का असर नहीं होता है
  • युद्ध मे चमत्कारों को देखकर गोगाजी को जाहर पीर/जिंदा पीर की उपाधि मो. गजनवी ने दी थी

2. धुर मेड़ी या धड़ मेड़ी – गोगामेड़ी, नोहर(तह.) हनुमानगढ़

  • यहां गोगाजी का धड़ भाग गिरा था
  • गोगामेड़ी में यहाँ मंदिर का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था तथा मकबरे नुमा करवाया था जिस के प्रवेश द्वार पर बिस्मिल्लाह लिखा है
  • गोगामेड़ी का आधुनिक निर्माण गंगा सिंह(बीकानेर शासक) ने करवाया था
  • गोगामेड़ी में पूरे 1 माह भाद्रपद महीने में पशु मेला लगता है जिसमें ऊँट व हरियाणवी नस्ल की गायों का सर्वाधिक है लेन देन होता है
  • पूजा – गोगामेड़ी में 11 महीने पूजा चायल जाति के मुस्लिम व 1 महीने हिंदू व मुस्लिम दोनों मिलकर पूजा करते हैं

3. गोगा जी की ऑल्डी या झोपड़ी – सांचौर,जालौर

  • पूर्वीया- गोगाजी के यात्री जो पंजाब, हरियाणा, यूपी, एमपी से आते हैं (क्योंकि यह राजस्थान के पूर्वी राज्य है)
  • डेरु/माठ वाद्ययंत्र- गोगा जी के भक्त बजाते हैं
  • कवि में मेंहा ने गोगाजी का रसावला नामक ग्रंथ लिखा
  • पणी रोपण- गोगाजी मंदिर के चारों और का हरा -भरा स्थान जहाँ से पेड़ काटना मना होता है

Note – इस तरह अन्य मंदिरों के आस-पास का हरा-भरा स्थान ओरण कहलाता है जहां से पेड़ काटना मना होता है

2.  पाबूजी

  •  जन्म -1239 ईस्वी
  • दिन- चैत्र अमावस्या
  • स्थान- कोलूमंड ,फलौदी (गोगाजी का ससुराल यही था)
  • पिता- धांधलजी जी राठौड़
  • माता- कमला दे
  • पत्नी- सुप्यारदे/फूल्मदे (अमरकोट के सूरजमल सोडा की पुत्री थी)
  • वाहन- केसर कालवी (काले रंग की घोड़ी) यह घोड़ी पाबूजी देवलचारणी ने दी थी

उपनाम

  1.  गोरक्ष देवता
  2. लक्ष्मण के अवतार
  3. ऊंटों के देवता
  4. शरणागत के रक्षक
  5. प्लेग रक्षक देवता
  6. हाड़- फाड़ के देवता
  7. वचन पुरुष देवता
  8. अछूतोंद्धारक देवता
  • मंदिर- कोलूमंड, जोधपुर
  • प्रतीक- भाला लिये अश्वारोही
  • मेला – चैत्र अमावस्या
  • पाबूजी के मेले में थाली नृत्य किया जाता है
  • मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट व सांडा(एक जीव) लाने का कार्य किया
  • ऊँट बीमार होने पर नायक/आयड़ जाति के भोपा रावण हत्था वाद्य यंत्र से पाबूजी की पड़ का वाचन करता है
  • रायका व रेबारी जाति माठ या घड़ा वाद्य यंत्र से पाबूजी के पवाड़े (यश गीत) गाती हैं
  • थौरी जाति के लोग सारंगी वाद्य यंत्र से पाबूजी के यश गाते है क्योंकि पाबूजी महाराज ने थौरी जाति के सात भाइयों को गुजरात शासक आना बघेला से छुड़वा कर लाए थे ।

ग्रंथ – 

  1. पाबू प्रकाश ग्रंथ – मोड़जी आसियां
  • पाबूजी के अनुयायी शादी में  साढ़े तीन फैरे लेते हैं

इनके तीन ग्रंथ थे –

1 पाबूजी रा दोहा –  लंघराज ने लिखा

2. पाबू रो छंद- मेहा बिठु ने लिखा

3. पाबू प्रकाश- मोड़जी आसिया ने लिखा

  • पाबूजी की बहन सोहन बाई थी जिसकी शादी जिंदराव खिंची (जायल, नागौर )के साथ हुई थी
  • पाबूजी का निधन-ढेंचू गांव (फलोदी) में देवल चारिणी की गायों की रक्षा करते हुए अपने बहनोई (जीजा) जिंदराव खिंची के साथ युद्ध करते हुए हो गया 1276 ईस्वी में ।
  • युद्ध में पाबू जी के साथ में चाँदा, डेम्बा जी सलजी,हड़मल जी थे जो वीरगति को प्राप्त हो गए ।
  • हड़मल पाबू जी के ऊँटोकी देख-रेख करता था
  • पाबूजी की मौत का बदला रूपनाथ/झरड़ा जी ने लिया

 

रुपनाथ जी/झरड़ा जी – यह पाबूजी के बड़े भाई बूड़ो जी के पुत्र थे (अर्थात पाबू जी के भतीजे थे)

  • रूपनाथ जी ने जिंदाराव खिंची को मारकर पाबू जी की मौत का बदला पूरा किया
  • ऒर बाद में रूपनाथ जी हिमाचल प्रदेश चले गए , हिमाचल प्रदेश में रुपनाथ जी को बालक नाथ के नाम से पूजे जाते है

नोट – राज. के एकमात्र देवता जिनकी पूजा हिमाचल प्रदेश में बालकनाथ के रूप में होती हैं

  • मंदिर- 1. कोलूमंड , जोधपुर- यहाँ इनका जन्म हुआ था ।

2.  सिम्भुदड़ा, बीकानेर

ग्रंथ – जसनाथजी ग्रंथ

  • पाबूजी की पगड़ी बाई और झुकी होती है
  • मेहर जाति के मुस्लिम पाबूजी को पीर (पाबू-पीर) मानते हैं -पाबूजी की फड़ के लिए राज. का शाहपुरा(भीलवाड़ा) जाना जाता है
  • राजस्थान में सबसे प्रसिद्ध फड़ पाबूजी की है जो रावण हत्ता के माध्यम से गायी जाती है

नोट- रावण हत्ता में 9 तार होते है

 

3.  रामदेव जी

  • उपनाम –
  1. पीरों के पीर
  2. रामापीर
  3. रुणिचा रा धणी
  4. साम्प्रदायिकता देवता
  5. ठाकुर जी
  6. कृष्ण का अवतार
  • रामदेव जी के मंदिर
  1. रामदेवरा,रुणिचा, पोकरण (जैसलमेर)
  2. छोटा रामदेवरा, गुजरात
  3. बराठिया, अजमेर
  4. मसुरिया, जोधपुर
  5. सुरताखेड़ा, चित्तौड़गढ़
  6. राजस्थान का छोटा रामदेवरा – खुण्डियास, अजमेर
  • जन्म – 1352 ईसवी /1409 विक्रम संवत
  • दिन- भाद्रपद शुक्ल द्वितीया (इस दिन को रामदेव जयंती, बाबे री बीज या बाबे री दूज कहते हैं)
  • जन्म स्थान- उडुकासमेर, शिव तह.(बाड़मेर)
  • पिता- अजमल सिंह तँवर
  • माता- मेंणा दे
  • पत्नी – नेतल दे/ निहालदे (अमरकोट के दलेल सिंह सोढ़ा की पुत्री)
  • बहन- सुगना/लाछा बाई
  • धर्म की बहिन- डाली बाई
  • गुरु- बालीनाथ
  • भाई- बिरमदेव (बलराम का अवतार)
  • मौसेरा भाई- हड़बूजी(इन दोनों के गुरु बालीनाथ ही थे)
  • घोड़ा का नाम- नीला/लीला
  • नेजा- पंचरंगी ध्वजा।
  • जम्मा- रात्रि जागरण
  • रिखिया- मेघवाल भगत
  • जातरू- यात्री जो रामदेवजी के पैदल आते हैं
  • ब्यावले- भजन रामदेव जी के
  • परचा-चमत्कार (रामदेवजी के)
  • पगल्या/पगले- चरण चिन्ह (” ” “)
  • भांभी- रामदेव जी का पुजारी
  • फूल- चांदी की मूर्ति जो गले में पहनी जाती है
  • कामड़िया – पंथ जो रामदेवजी ने अछुतो के उद्धार के लिये चलाया था
  • तेरहताली- नृत्य जो कामड़िया पंथ / जाति की महिलाएँ करती हैं
  • 24 वाणिया- रामदेवजी द्वारा रचित ग्रंथ(रामदेवजी एकमात्र लोकदेवता थे जो कवि थे)
  • मेला- भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक
  • समाधि – भाद्रपद शुक्ल एकादशी को राम सरोवर तालाब के किनारे जीवित समाधि ली( रुणिचा, पोकरण तह.(जैसलमेर)
  • रामदेव जी के एक दिन पहले उनकी बहन डाली बाई ने जीवित समाधि ली थी जहां इनका कंगन बना है उसमे से निकलने पर कष्टों से छुटकारा मिलता है

नोट- अनुच्छेद 21 के अनुसार जीवित समाधि लेना गैर कानूनी अपराध हैं ।

रामदेव जी के चमत्कार

  • उफनते दूध को रोका
  • कपड़े के घोड़े को उड़ाया
  • रायका की मिश्री का नमक बनाया
  • मक्का से पांच पीरों के बर्तन ला कर दिए
  • अपने गुरु को हरी दर्शन करवाएं
  • सातलमेर , पोकरण कस्बे में भेरू राक्षस का वध किया

 

  • रामदेव जी की बहिन सुगना की शादी पुंगल, बीकानेर में की गई तथा सुगना को सातलमेर दहेज में दिया गया
  • रामदेवजी की शिष्या- आई माता(एकमात्र लोकदेवी जो रामदेव जी की शिष्या थी)

4.  हड़बूजी

  • यह सांखला राजपूत थे
  • जन्म 15 वीं सदी
  • स्थान- भुंडेल , नागौर
  • पिता- मेंहा जी
  • गुरु- बालीनाथ
  • वाहन- सियार
  • यह रामदेव जी के मोसेरे भाई थे
  • मेला- भाद्रपद शुक्ल पक्ष

 

  • उपनाम
  1. शकुन शास्त्र के ज्ञाता
  2. बाल ब्रह्मचारी
  3. योगी/सन्यासी
  4. गौ रक्षक देवता
  5. वीर योद्धा
  6. सिद्ध पुरुष
  7. चमत्कारी पुरुष
  • मंदिर- बेंगटी गांव,फलोदी (जोधपुर)
  • हड़बूजी के मंदिर में गाड़ी की पूजा की जाती है जिसमें हड़बूजी अपंग/पंगु गायों के लिए चारा लाते थे
  • हड़बूजी राव जोधा (जोधपुर शासक) के समकालीन थे
  • हड़बूजी जन्म 15 वी सदी/1401-1499 )
  • राव जोधा शासनकाल – 1438-89
  • -बेंगटी गांव हड़बूजी को राव जोधा ने दिया था, हड़बूजी ने राव जोधा को राज्य प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था
  • मंदिर का निर्माण- अजीत सिंह (जोधपुर शासक) ने करवाया समाधि- रामदेव जी की समाधि के आठवें दिन हड़बूजी ने समाधि ले ली

 

5.  मेहाजी मांगलिया

  • जन्म -14 वी सदी
  • दिन- भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी के दिन )
  • सांखला परिवार में
  • पिता- गोपालराव सांखला
  • मेहा जी का पालन पोषण ननिहाल मांगलिया गौत्र में हुआ
  • मंदिर- बापणी, जोधपुर
  • वाहन/घोड़ा- किरड़काबरा
  • मेला- भाद्रपद कृष्ण अष्टमी
  • मेहाजी का निधन गायों की रक्षा के लिए राणगदेव भाटी के साथ युद्ध करते हुए हो गया
  • इन्होंने राव चूड़ा को तलवार भेंट की थी
  • इनका पुजारी शादी नहीं करता है वंश वृद्धि के लिए पुत्र गोद लेते हैं

उपनाम-

  • गौ रक्षक देवता

◆ अन्य लोक देवता

इलौह जी

  • छेड़छाड़ के देवता
  • अच्छे वर वधु के लिए इनकी पूजा होती है
  • इनके मंदिर में आदम कद नग्न मूर्ति की पूजा होती है
  • यह होलिका के होने वाली पति थे
  • संतान हीन स्त्री के इनकी पूजा करने पर पुत्र हो जाता है
  • आजीवन कुंवारे रहे थे
  • मंदिर- बाड़मेर

झुंझार जी

  • जन्म- इमलोह
  • मंदिर- स्यालोदड़ा (सीकर)
  • उपनाम- गौ रक्षक देवता
  • इन्होंने अपनी जान गायों की रक्षा हेतु दी थी
  • इनके मंदिर में पांच पत्थर का की मूर्ति हैं जिसमें तीन भाइयों व दो दूल्हा-दूल्हन कीहोती है
  • मेला- चैत्र शुक्ल नवमी (रामनवमी) को स्यालोदड़ा में लगता है

मामा देव

  • बरसात के देवता
  • मंदिर गांव से बाहर होता है खुश करने के लिए भैंसों की बलि दी जाती है
  • मंदिर में काष्ट का तौरण होता है जबकि इनके मंदिर मैं मूर्ति नहीं होती है

देवनारायण जी

  • जन्म -1243 ई./ 1300 विक्रम संवत
  • तिथि- माघ शुक्ल षष्टी( देवनारायण जयन्ती भी इसी दिन)
  • स्थान- आसींद ,भीलवाड़ा
  • इनका पालन-पोषण मध्यप्रदेश में हुआ
  • यह बगड़ावत वंश के नागवंशीय गुर्जर थे
  • पिता-सवाई भोज
  • माता सेडु खटानी
  • पत्नी- पिपल दे (धार, mp के जय सिंह की पुत्री थी)
  • इनके बचपन का नाम उदय सिंह था
  • घोड़ा- लीलाघर
  • प्रतिक- कुंडली वाला साँप
  • इनके मंदिर में 2 ईंटो को नीम की पतियों से पूजा जाता है

उपनाम

  1. गौ रक्षक
  2. विष्णु का अवतार (गुर्जरों के अनुसार )
  3. आयुर्वेद के देवता
  • मेला- भाद्रपद शुक्ल सप्तमी
  • देवनारायण जी फड़ सबसे बड़ी व सबसे छोटी होती मानी गई है जिसका वाचन गुर्जर भोफा जंतर वाद्य यंत्र से करता है
  • देवनारायण जी की फड़ एकमात्र ऐसी फड़ है जिस पर 2 सितंबर 1992 में 2 रुपये की डाक टिकट जारी हुई, जिससे 2011 में बढ़ाकर 2 रु. की कर दी गई

आराध्य स्थल/मन्दिर

  1. देवमाली, ब्यावर(अजमेर)- यहां देवनारायण जी का निधन हुआ
  2. देवधाम, जोधपुरिया(टोंक)- यहां देवनारायण जी ने अपने उपदेश दीये
  3. देव जी की डूंगरी ,चित्तौड़गढ़ – यहां स्थित मंदिर का निर्माण राणा सांगा ने करवाया
  4. देवमाल्या, ब्यावर(अजमेर)
  5. गोढ़ा ढंडावत,आसिन्द(भीलवाड़ा) – यहां देवनारायण जी का जन्म हुआ
  • देवनारायण जी राजस्थान के व गुजरात के मुख्य देवता है

Note – सवाई की उपाधि सर्वप्रथम सवाई जय सिंह को मिली थी

  • खंडित फड़ को पुष्कर झील में बहा दिया जाता है इसे फड़खण्डी कहते है
  • फड़(देवनारायण जी की) – सबसे लंबी(25 हाथ) , सबसे छोटी(क्योंकि डाक टिकिट पर चित्रित किया हैं) , सर्वाधिक चित्रांकन वाली फड़ हैं
  • फड़ में देवनारायण जी के घोड़े का रंग हरा बताया है (लीलाधर- घोड़े को)
  • देवनारायण जी ने भिनाय, अजमेर शासक दुर्जनसशाल को अपने भाइयों( महेंद्र, भूणा, मानसिंह , मदन) के साथ मिलकर मार दिया और अपने पिता पिता की मौत का बदला लिया

हरिराम जी

  • मंदिर- झोरड़ा, नागौर
  • हरिराम जी के मंदिर में मूर्ति की जगह सांप की भांबी व चरण चिन्हों की पूजा की जाती है
  • मेला- भाद्रपद व चैत्र शुक्ल चतुर्थी & पंचमी
  • पिता- रामनारायण जी
  • माता- चंदणी देवी

देव बाबा – 

  • मंदिर- नगला जहाज(भरतपुर)

उपनाम –

  1. ग्वालों के देवता
  2. पशु चिकित्सक
  • मेला- भाद्रपद व चैत्र शुक्ल चतुर्थी और पंचमी को
  • ग्वालों को भोजन कराने पर यह खुश होते हैं
  • वाहन- पाडा/भैंसा
  • चमत्कार – ऐसा माना जाता है, इन्होंने मरने के बाद भी अपनी बहिन का भात भरा ।
  • इनका मंदिर नीम के नीचे होता है ।
  • यह गुर्जर जाति के आराध्य देव हैं ।

कल्ला जी राठौड़

  • जन्म- 1544 ई/1601 वि. स.
  • स्थान सामियाना, नागौर
  • मीरा इनकी भुआ थी

उपनाम

  1. चार हाथों का देवता
  2. बाल ब्रह्मचारी
  3. योगी, सन्यासी
  4. वीर योद्धा
  5. कल्याण
  6. कमधण
  • पिता – आस सिंह
  • माता- श्वेत कँवर
  • गुरु – भैरवनाथ जो राव जोधा के पुत्र थे मीरा के गुरु
  • होने वाली पत्नी- कृष्णा (यह शिवगढ़ की राजकुमारी थी)
  • इन्हें शेषनाग का अवतार कहते हैं
  • मेला – अश्विन शुक्ल नवमी
  • मंदिर- भैरव पोल (चितौड़गढ़)
  • कल्ला जी का निधन- चित्तौड़गढ़ के दूसरे दरवाजे भैरव पोल के आगे अकबर की सेना से लड़ते हुए 1568 ई. में हो गया
  • कल्ला जी की पीठ- रनैला ( चित्तौड़गढ़ ) में है
  • सांप, बिच्छू, भूत-प्रेत का कल्ला जी के मंदिर में इलाज होता है

 

Other knowledge

  • मीरा (मेड़ता ) मीरा की शादी भोजराज ( चितौड़गढ़, राणा सांगा कर पुत्र) के साथ होती है मीरा के साथ चित्तौड़गढ़ उसका भाई जयमल तथा मीरा का भतीजा कल्ला जी राठौड़ चले जाते हैं जो उदय सिंह के सेनापति बन जाते हैं उनके साथ फत्ताजी भी थे
  • जब अकबर ने चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया तो जयमल के घायल होने के कारण कल्ला जी ने जयमल को अपने कंधो पर बेठा कर युद्ध किया ” जिससे इनको दो धड़ , दो सिर और चार हाथों वाले लोक देवता कहते हैं ” तब यह चित्तौड़गढ़ के दूसरे दरवाजे ( भैरव पोल) पर तैनात थे
  • चित्तौड़गढ़ के 7 दरवाजे हैं
  1. पांडन पोल
  2. भैरव पोल
  3. हनुमान पोल
  4. गणेश
  5. जौड़ला
  6. लक्ष्मण
  7. राम पोल
  • अकबर और उदय सिंह के युद्ध में कल्ला जी और जयमल शहीद हो गए (1567 1568)
  • **  यह चित्तौड़गढ़ का तीसरा साका कहलाता है

वीर फताजी

  • मंदिर- सांथू, जालौर
  • गायों की रक्षा हेतु अपनी जान दे दी (गोरक्षक देवता)
  • इन्हें शस्त्र विद्या का ज्ञान था
  • मेला- भाद्रपद की शुक्ल नवमी

बिग्गाजी

  • यह जाखड़ ,जाटों के आराध्य देव हैं (यह जाट थे )
  • जन्म- 1301 ई.
  • स्थान- रिडी, श्री डूंगरगढ़(तहसील),बीकानेर
  • पिता- महन जी
  • माता सुल्तानी
  • मेला 14 अक्टूबर
  • यह गोरक्षक देवता थे

तल्लीनाथ जी राठौड़

  • जन्म- शेरगढ़ (जोधपुर)
  • बचपन का नाम- गांगदेव राठौड़
  • पिता- वीरमदेव
  • गुरु- जालन्धरनाथ
  • इन्हें राव चुडा के भाई के रूप में जाना जाता है (राव चुड़ा को मारवाड़ में राठौड़ वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं)
  • ओरण- तल्लीनाथ जी के मंदिर के आस पास का धार्मिक हरा भरा स्थान जहां से पेड़ काटना मना होता हैं
  • मंदिर- पंचमुखी पहाड़ी,पाचोता (जालौर)
  • यहां जहरीला जानवर काटने का इलाज होता है

मल्लिनाथ जी

  • जन्म- 1358 ईस्वी
  • स्थान- तिलवाड़ा,बाड़मेर
  • पिता तीड़ाजी/सलखाजी
  • माता- जीणा दे
  • पत्नी- रुपादे ( इनका मंदिर मालाजाल गाँव, बाड़मेर में है जिसमें सभी धर्मों के लोग भाग लेते हैं)
  • गुरु- उगम सिंह भाटी

उपनाम

  1. सिद्ध पुरुष
  2. चमत्कारी पुरुष
  3. वीर पुरुष ( क्योंकि इन्होंने फिरोज तुगलक(दिल्ली शासक) व  निजामुद्दीन (मालवा शासक ) दोनों को हराया था
  • मालानी(बाड़मेर) क्षेत्र मल्लिनाथ के नाम पर पड़ा
  • राव चूड़ा मल्लिनाथ जी के भतीजे थे इन्होंने राव चूड़ा को मंडोर (राठौड़ों की पूर्व राजधानी ) दिलाने में सहायता की 1394 में ।
  • ** मल्लीनाथ जी ने 1399 ई. में कुंडा पंथ स्थापना  की
  • मेला-चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक (15 दिन)
  • इस समय तिलवाड़ा बाड़मेर में पशु मेला लगता है लूनी नदी के किनारे
  • यह राजस्थान का सबसे प्राचीन पशु मेला है जिस में सर्वाधिक थारपारकर, कांकरेज गाय का क्रय विक्रय होता है

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Geography of Rajasthan

गुरुशिखर,सेर, दिलवाड़ा, जरगा,अचलगढ़ (सिरोही) रघुनाथगढ़ (सीकर), खो (जयपुर),तारागढ़( अजमेर) अलवर बाबरी जयपुर बैराठ – अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर हैं। कर्नल जेम्स टॉड ने इसे संतों का सिक्का का है। गुरुशिखर को ही हिंदू ओलंपस की संज्ञा दी गई है तथा यह दत्तात्रेय की तपोस्थली है। – हिमालय पर्वतमाला व दक्षिण में […]

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चौहान राजवंश

चौहान राजवंश जानकारी के स्रोत पृथ्वीराज – रासो चंदबरदाई पृथ्वीराज विजय – जयानंद बीसलदेव – रासो नरपति नाल्ह हम्मीर महाकाव्य – नवीन चंद्र सूरी राजस्थान के प्रमुख चौहान राजवंश व उनके संस्थापक क्रम संख्या  रियासत संस्थापक 1. शाकंभरी वासुदेव चौहान 2. अजमेर अजय राज चौहान 3. रणथम्भौर गोविंद राज 4. जालौर कीर्तिपाल चौहान 5. सिरोही […]

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राजपूतों की उत्पत्ति || Rajasthan GK Notes

राजस्थान का इतिहास नोट्स  राजस्थान का इतिहास  राजपूतों की उत्पत्ति  राजपूत काल सातवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी अग्निकुंड का सिद्धांत पृथ्वीराज रासो – चंद्रवरदाई इस पुस्तक में राजपूतों की उत्पत्ति का अग्निकुंड सिद्धांत दिया गया है उसके अनुसार ऋषि वशिष्ठ के माउंट आबू में किए गए यज्ञ से चार योद्धा उत्पन्न हुए परमार प्रतिहार चालुक्य […]

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राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं एवं पुरातात्विक स्थल

राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं एवं पुरातात्विक स्थल राजस्थान का इतिहास (Rajasthan GK – History) – Rajasthan ki Prachin Sabhyata PDF,Rajasthan ki Prachin Sabhyata PDF Download in Hindi,प्राचीन सभ्यताएं PDF, राजस्थान की प्राचीन सभ्यता की ट्रिक, राजस्थान की प्रमुख प्रागैतिहासिक सभ्यताएं, राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं एवं जनपद, राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं   इतिहास शब्द इति + हास दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है “निश्चित रूप से ऐसा ही […]

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राजस्थान में वन्य जीव अभ्यारण्य || Wildlife Sanctuary in Rajasthan

राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण्य || Rajasthan Wildlife Sanctuary – भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम मौर्य वंश के शासक अशोक ने वन्यजीवों के संरक्षण का प्रावधान किया था। – राजपूताने की पहली रियासतों टोंक रियासत थी। – जिसमें 1901 में शिकार को प्रतिबंधित किया। – स्वतंत्रता से पहले राजपूताने को शिकारियों का स्वर्ग कहा गया है। […]

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Rajasthan Gk

Rajasthan GK : Important Questions राजस्थान में मानसून वर्षा किस दिशा में बढ़ती हैउत्तर — दक्षिण पश्चिम से उत्तरी पूर्वी की और राजस्थान में जून माह में न्यूनतम वायुदाब किस जिले में संभावित हैंउत्तर — जैसलमेर राजस्थान कितने संभागों में बाटा हुआ हैउत्तर — 7 राजस्थान का 33 वा जिला जो 2008 में बना वह […]

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राजस्थान में पशु संपदा / पशुधन

राजस्थान में पशु संपदा – राजस्थान में पशु संपदा | 20वीं पशु गणना 2020 | राजस्थान में पशुओं की प्रमुख नस्लें | राजस्थान के प्रमुख पशु | मेले राजस्थान के प्रमुख मेले trick | पशु गणना 2019 के अनुसार राजस्थान में कुल पशुधन | राजस्थान में सर्वाधिक पशुधन  | 20 वी पशु गणना के अनुसार […]

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